Summer Internship with IIM Ahmedabad – Tarun from IIT Bombay
Tarun’s story was very well-articulated — in Hindi!
Wildcard Entry for: – 7th August 2012
Name of the intern: – Tarun
Institute: – IIT Bombay
Organization interned with: – IIM Ahmedabad
Editor’s note:– Tarun sent in his entry in Hindi; and we loved the idea. Not only that, his story is very interesting and extremely well-written. Do give it a look.
उस दिन जब इस प्रतियोगिता के बारे में पड़ा तो पहले तो सोच में पड़ गए की लिखे या न लिखे, क्योंकि हमारी गर्मी की छुट्टियाँ ना तो किसी बड़ी कंपनी के वातानाकूलित दफ्तर में गुजरी थी ना ही किसी पराये देश के हसीं मौसम में . हमारी छुट्टियाँ तो गुजरात और महाराष्ट के अलग अलग गाँवों की धुल फाकते गुजरी थी जिनके बारे में क्या पता कोई जानना भी चाहता हो या नहीं. परन्तु फिर हमने ‘इंटर्नशाला’ के मकसद के बारे में पड़ा और समझा की इसका मकसद है लोगो को इंटर्नशिप की महत्वपूर्णता समझाने का , और जहाँ तक महत्वपूर्णता की बात है हमारी इंटर्नशिप को हम अव्वल नम्बर पर रखते है और इसीलिए आप के साथ अपनी इंटर्नशिप का अनुभव बाटं रहे है.
इन गर्मियो में हम आर जे मत्थाई शैक्षिक नवाचार केंद्र ( आर जे एम सी ई आई) जो की भारतीय प्रबंधन संसथान, अहमदाबाद के अंतर्गत है,उसमे एक शोध सहायक के तौर पर एक बहुत ही बेह्तेरिन अध्यापक के साथ कार्यरत रहे,अब आप सोच रहे होगे की इसमें बताने वाली कौन सी बात है, तो हमारे प्यारे मित्रो इस से पहले की हम उस पहलू पर पहुचे हम आप को चंद आंकड़ो से अवगत करना चहाते है-
*हमारे देश की सतर प्रतिशत आबादी गाँव में बस्ती है और बाकी तीस प्रतिशत शहरों में (अब आप खुद ही सोच सकते है की इस देश का विकास नए चमचमाते माल्स और शौपिंग सेंटर्स से नापा जाना चाहिए या सूखे पड़े किसानो के खेतो से ).यही नहीं हमारे देश में स्कूल जाने वाले छात्रों में से अस्सी प्रतिशत छात्र सरकारी विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करते है तथा बाकी बीस प्रतिशत निजी विद्यालयों में, इसके इलावा हमारे देश के सभी विद्यालयों में से त्रिनावे (९३) प्रतिशत विद्यालय सरकारी है तथा मात्र सात प्रतिशत विद्यालय निजी तौर पर कार्यरत है*
ये आंकड़े देख कर क्या आप को नहीं लगता है की अगर हम हमारी आने वाली पीड़ी को सक्षम बनाना चहाते है वा अपने देश को प्रगति करते हुए देखना चाहते है, तो ये अनिवार्य है की हम इन सरकारी ग्रामीण विद्यालयों की तरफ भी एक नजर डाले तथा ये सुनिश्चित करे की मात्र चंद भाग्यशाली शेहरी बालक ही नहीं अपितु हमारे देश का हर बच्चा मूलभूत शिक्षा प्राप्त करे तथा जीवन में सफल हो कर देश की प्रगति में योगदान दे सके
अगर आप का जवाब हां है, तो बस समझ लीजिये की आप के और मेरे विचार बहुत मिलते है, और हमारे इसी मिलते जुलते विचार के कारण मैंने इस केंद्र में काम करने का मन बनाया था.
केंद्र पर काम का विषय: केंद्र पर कार्य का मुख्य विषय था ऐसे अध्यापको को पहचानना तथा उन पर व्यक्ति अध्यन (case study ) करना जिन्होंने अपने स्तर पर उपस्तिथ समस्याओं का नवचार (innovative ) तरीको से समाधान किया , और इसी कार्य के सिलसिले में मैं काफी ग्रामीण अध्यापको से मिला और उनके द्वारा किये गए विभिन्न कार्यो के बारे में जानने के बाद मुझे ये आवश्यक लगा की मैं इन अध्यापको द्वारा किये गए कार्य को अधिक से अधिक लोगो तक पहुचाऊं ताकि हम सभी इन कार्यो द्वारा प्रेरणा ले सके और ये एहसास कर सके की कोई भी व्यक्ति अपनी डिग्री,नौकरी या ऐश्वर्य से महान नहीं होता, वो महान होता है तो सिर्फ अपने कार्य से.यूँ तो इन दो महीनो के दौरान मैंने सौ से भी अधिक अध्यापको के बारे में जाना पर यहाँ मैं आप के साथ सिर्फ तीन अध्यापको के कार्य का बहुत ही संछेप में विवरण कर रहा हूँ , बाकी अध्यापको की तरह ये तीनो भी बहुत ही सामान्य लोग है जिनमे से किसी ने ना तो कोई बहुत बड़ी डिग्री हासिल की, ना ही किसी ने बहुत धन एकत्र किया और आज तक इन्हें इन के गाँव के बहार शायद ही कोई जानता हो, पर इनके कार्य के बारे में पड़ने के बाद आप शायद खुद ही इन मापदंडो की जायजता पर प्रशन उठाने लग जाए.
१) घनश्याम सिंह जडेजा – १७ वर्ष की आयु में जब घनश्याम सिंह जी ने अपने १२वि की पड़ी पूरी करी तब सीमित साधनों की वजह से वो अपनी पडाई जारी न रख सके और उन्होंने अध्यापक का पद ग्रहण किया. सत्रह वर्ष का ये युवक अपने मन में एक सुसजित पाठशाला में होनहार बच्चों को पडाने का जो स्वपन ले कर गया था वो पहले ही दिन चकना चूर हो गया. घनश्याम जी की पहली पाठशाला जिस गाँव में थी वो उस छेत्र का सब से बदनाम तथा गरीब गाँव था, उस गाँव के अंधिकांश लोग चोरी चकारी किया करते थे , पाठशाला के नाम पर एक टूटा हुआ कमरा था जिस में मात्र एक गली हुई मेज पड़ी थी , यही नहीं पाठशाला के परिसर में ग्रामीण लोग जुआ खेला करते तथा शराब पिया करते थे. विद्यालय में अस्सी बालको का नाम दर्ज था परन्तु सिर्फ बीस पच्चीस बालक ही स्कूल आते थे तथा कुछ देर मौज मस्ती कर के घर चले जाया करते थे.गाँव की कोई भी लड़की विद्यालय नहीं आया करती थी.ऐसे गाँव को बदले का जिम्मा लिया घनश्याम जी ने, उन्होंने गाँव में धीरे धीरे परिवर्तन की हवा चलानी शुरू की (इस कार्य की शुरुवात के दौरान एक ग्रामीण ने उन पर हमला भी किया क्योंकी उस से उसकी जुआ खेलने की जगह चीन गयी थी ), वो लोगो के घर जा जा कर मिले, उन्हें समझाया, बच्चो को पडाने के नए नए रुचिकर तरीके व्यक्सित किए और अभी दो हफ्ते पूर्व जब मैंने उस गाँव का दौरा किया तो पाया की अब वहा चौदह कमरों का एक भव्य विद्यालय है (जिस के लिए जमीन घनश्याम जी के सह अध्यापक ने तथा घनश्याम जी ने गाँव के ही एक व्यक्ति से माँगी तथा सरकारी फंड से वह निर्माण कार्य कराया था) जिसमे एक कंप्यूटर लैब भी शामिल है. इस विद्यालय में ३०० छात्र दर्ज है (सभी नियमित रूप से विद्यालय आते है) जिन में से १५० से भी अधिक लड़किया है .इतना ही नहीं, गाँव के एक बुजुर्ग से बात करने पे पर पता चला की बच्चों की शिक्षा का असर बड़ो पर भी पड़ा और अपने बच्चों को पड़ता देख वयस्क लोगो ने भी गलत काम छोड़ कर मेहनत और इमानदारी का मार्ग चुन लिया. सिर्फ इस एक इंसान की वजह से एक गाँव हमेशा हमेशा के लिए परवर्तित हो गया और ना जाने कितनी ही जिन्दगिया सुधर गयी.
२) इन सज्जन का नाम मुझे अब ज्ञात नहीं, अपितु इनके काम के बारे में मुझे हर एक बात याद है. ये सज्जन जिस गाँव में अध्यापक थे उस गाँव में एक पिछड़ी जाति के लोग भी रहा करते थे.इसी जाति में एक अपाहिज लड़की थी.इस लड़की को पाठशाला में भर्ती करने के लिए इन सज्जन ने काम शुरू किया परन्तु मुख्य रूप से ये तीन दिक्कते थी:
– उसके अपाहिज होने की वजह से उसक माँ बाप का मानना था की एक अपाहिज पड़ लिख कर भी क्या ही कर लेगी तथा उन्हें ये डर भी था की बहार लोग उसकी मजाक बनायेगे
– उसकी उम्र बहुत अधिक हो चुकी थी और अब अगर वो पड़ाई शुरू करती है तो उसे अपने से बहुत कम उम्र के बच्चों के साथ पड़ना पड़ेगा
– उसकी जाति की कोई भी लड़की पाठशाला नहीं जाती थी
इन्ही दिक्कतों की वजह से उस लड़की के माँ बाप ने इन सज्जन के बहुत कोशिश करने पर भी उसे पाठशाला नहीं भेजा, परन्तु इन सज्जन ने कोशिश नहीं हारी, ये तीन वर्षो तक उस लड़की के माँ बाप को समझाते रहे और अन्थहा तीन वर्षो के पश्चात उस लड़की के माँ बाप ने उसे स्कूल भेजा. अब इस पूरे किस्से में सब से प्रन्शाश्निया बात ये है की इस लड़की के उदहारण को देख कर उसी जाति की सभी लड़किया धीरे धीरे पाठशाला आने लगी और आज उस गाँव में उस जाति की हर लड़की स्कूल जाती है
३) Mary Josephine : इनके बारे में मैं जितना कहूं उतना कम है,Mary जी जिस पाठशाला में कार्यरत थी वो सिर्फ चोथी कक्षा तक ही थी, एक बार Mary जी को मौका मिला अपनी पाठशाला को माध्यमिक पाठशाला का दर्जा दिलाने का,हालांकि Mary जी उस समय गर्भवती थी पर फिर भी मारी जी ने गाँव के हित को ऊपर रखते हुए अपनी तरफ से पूरी जी जान लगा दी पाठशाला को माध्यमिक दर्जा दिलाने के लिए.इस भाग दौड़ से पाठशाला को तो माध्यमिक दर्जा मिल गया परन्तु Mary जी ने अपना अंश जन्म से पहले ही खो दिया.
मैं आशा करता हु कि इस लेख को पड़ कर आप हमारे समाज के एक नए पहलू से रूबारू हुए होंगे और मेरे वो मित्र जो स्वयं ग्रामीण प्रसठ्भूमि से है उन्हें शायद एक नयी प्रेरणा मिली होगी कुछ कर दिखाने की, एक बदलाव लाने की . मित्रो ये बदलाव लाना हम सबकी जिम्मेदारी है , चाहे हम शेहर के हो या गाँव के, हम सभी का ये कर्त्तव्य है की हम गाँव में पल रहे हमारे भारतवासी अवाम की दिक्कतों को जाने और अपने अपने स्तर पर उनकी बेहतेरी के लिए काम करे , हमे ये नहीं भूलना चाहिए की किसी शरीर को विकसित तभी कहते है जब उसका हर अंग सही अनुपात पे बड़ा हो, अगर शरीर का सिर्फ एक हिस्सा ही बड़े और दूसरा वही रह जाए तो उसे विकास नहीं बीमारी कहते है, अब आप तय करिए आप को क्या चाहिए – एक विकसित भारत या एक बीमार भारत?
सालो से उसी मक़ा में रह रहे थे
कि रोज ही तो निहारते थे उसको
उपरी मंजिल पर झिलमिलाती रौशनी देख कर
मुसुकुराते थे और थप थपआते थे खुद को
ए काश हमने नीचे भी नजर डाली होती
हमारे भाई बंध सब जल चुके थे
नीव भी गल चुकी थी धीरे धीरे
अब डरते है कि कही इम्मारत गिर ना जाये,गिर ना जाये!
* आंकड़े – जनसँख्या (२००१ कि जनगडना)
-शिक्षा ( आर जे एम सी ई आई)
Was this interesting? If yes, please like the post on Facebook (below) and help Tarun become winner of the week and win the prize (Rs. 1,000/-) that he truly deserves!